भाग्य Vs कर्म for Dummies

मन में अच्छा सोंच कर काम शुरू करो , जिससे काम में जोश रहे , दिमाग फ़ालतू सोंचने के बजाय काम पर फोकस हो सके

धन्यवाद व्यक्त करना, ध्यान केंद्रित करना, और दूसरों की मदद करने का प्रयास करना एक शांत और खुश व्यक्ति के लिए आधार बनता है। लंबे समय तक द्वेष पालना, नकारात्मक विचारों का मनोरंजन करना, और अनैतिक व्यवहार न केवल मन को अशांत करता है बल्कि असंतोष का भी कारण बनता है।

बिजनेस न्यूजट्रंप ऐसा कौन सा व्यापार करना चाहते हैं जिसके लिए उन्होंने शहबाज शरीफ की जगह असीम मुनीर को दावत दी?

सच्चाई, ईमानदारी और सकारात्मक दृष्टिकोण व्यवसाय में सपनों और सफलता को जन्म दे सकते हैं। दूसरी ओर, धोखा देना, विलंब करना और समग्र नकारात्मकता विनाशकारी है और असफलता का कारण बनती है।

यह कलियुग नहीं कर्मयुग है। इसका मतलब भाग्य भी कर्म के आधीन है पर कर्म भाग्य के नहीं।

जिस तरह एक मूर्तिकार अपने हातो से मूर्तिको आकर देता है उसी तरह हम भी अपने कर्मो से अपना जीवन बदल सकते है.

ध्यान भी एक कर्म है, कुछ देखना, सुनना, बोलना, सोचना, ये सब क्रियाएं कर्म ही तो हैं। हम क्या देखते हैं और फिर वह देख के क्या सोचते हैं, यह कर्म ही तो हैं।

गीता अनुसार जिस फल को पाने के लिए कर्म किया जाता है जरूरी नहीं कि वह मिले ही और मन चाहे रूप में मिले। ऐसा क्यों? इसका कारण है कि मनुष्य के पास अपनी मर्जी से काम करने की स्वतन्त्रता तो है लेकिन काम शुरू करने के पहले उसका आगा-पीछा सोच पाने और सारे पहलुओं को देख-समझ पाने की क्षमता बहुत सीमित है। जैसा कि ऊपर के उदाहरणों से स्पष्ट है। अधिक तैयारी करने वाले परीक्षार्थी की तमाम मेहनत के बावजूद वह इस बात को नहीं देख सकता था कि पेपर बनाने वाला उन अध्यायों में से सवाल दे देगा जो उसने नहीं पढ़े। अर्थात जब आप कोई काम कर रहे होते हैं तो हो सकता है कि उसके विपरीत कहीं कोई और काम चल रहा हो जो आपकी सारी मेहनत पर पानी फेर दे। इन्हीं अनदेखी, अनजानी परिस्थितियों के कारण मिलने वाला फल ही भाग्य होता है। अर्थात यह कहना गलत नहीं होगा कि किसी का कर्म किसी का भाग्य होता है और इन दोनों को अलग-अलग न देख कर यह मानना चाहिए कि ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

हर प्राणी का भाग्य एवं कर्म का परिणाम भिन्न होता है - स्वरभानु नामक राक्षस ने भी समुद्र मंथन में अपना योगदान दिया था, जब वह देवता का रूप धारण कर छल से अमृत पी रहा था, इस कर्म का परिणाम यह निकला कि मोहिनी रूप धारण किए हुए भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से स्वरभानु नामक दैत्य के दो टुकड़े हो गए, अमृत पीने के कारण वह दैत्य मर तो नहीं पाया, पौराणिक ग्रंथों के अनुसार सिर राहु के रूप में एवं शेष धड़ click here केतु के रूप में आज भी विद्यमान हैं। ज्योतिष शास्त्र में राहु-केतु छाया ग्रह हैं, भले ही इनका भौगोलिक अस्तित्व नहीं है, परन्तु प्रभाव अवश्य उत्पन्न करते हैं। प्रत्येक प्राणी कर्म के बंधन से बंधा हुआ है, कर्म करने के बाद फल किस रूप में आएगा, फल परिणाम शुभ होगा अथवा अशुभ, यह सब भाग्य की गति पर निर्भर है, जिसे ज्योतिष शास्त्र में महादशा, अन्तर्दशा, ग्रह गोचर के माध्यम से जाना व समझा जाता है।

कर्म ही बड़ा होता है, इसीलिए ये नहीं कहते कि “भाग्य ही पूजा है” बल्कि ये कहते हैं कि “कर्म ही पूजा है”

खुद को भाग्य के भरोसे वही छोड़ता है जो कर्म नहीं करना चाहता। कर्म करने से ही भाग्‍य बनता है। जिसको कर्म में जितना विश्‍वास है वह व्‍यक्ति उतना ही सक्सेस होगा। हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहने से न ही भाग्‍य साथ देता है और न कर्म ही होता है।

मैं-हां आचार्य जी, तभी तो कहते हैं कि अगर बुरा हो रहा है तो उसको कोई टाल नहीं सकता, क्योंकि वह किस्मत में लिखा भुगत रहा है।

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अंत में, अब अगर मेरे विचार आपको तार्किक लगें व् कर्म की ओर प्रेरित करें तो आप इसे क्या कहेंगे … “ मेरा कर्म या मेरा भाग्य “ फैसला आप पर है 

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